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कैसे करें सेब की खेती

कृषि विज्ञान केंद्र पठानकोट द्वारा विकसित सेब की किस्म से पंजाब में होगी सेब की खेती

कृषि विज्ञान केंद्र पठानकोट द्वारा विकसित सेब की किस्म से पंजाब में होगी सेब की खेती

खेती-किसानी के क्षेत्र में कृषि वैज्ञानिकों एवं कृषि विशेषज्ञों का काबिल ए तारीफ योगदान रहता है। अगर वैज्ञानिक शोध करना बंद करदें तो किसानों को कृषि से उत्पन्न होने वाले नवीन आय के संभावित स्त्रोतों की जानकारी नहीं मिलेगी। जिससे खेती किसानी एक सीमा में ही सिमटकर रह जाएगी। किसानों को काफी फायदा होगा। कृषि विशेषज्ञों ने अब पंजाब की मृदा एवं जलवायु के अनुकूल सेब की किस्म विकसित की है। जी, हाँ अब पंजाब के किसान भाई भी सेब का उत्पादन करके अच्छी खासी आमदनी कर पाएंगे। जैसा कि हम जानते हैं, पंजाब एक कृषि प्रधान राज्य के तौर पर जाना जाता है। उत्तर प्रदेश क्षेत्रफल की दृष्टि और उपयुक्त जलवायु होने की वजह के चलते इसको छोड़के दूसरे स्थान पर पंजाब राज्य में सर्वाधिक गेहूं की खेती की जाती है। हालाँकि, अब पंजाब के किसान सेब का भी उत्पादन कर सकेंगे। दरअसल, कृषि विज्ञान केंद्र पठान कोट के जरिए एक ऐसी सेब की किस्म विकसित की गई है। जो कि पंजाब की जलवायु हेतु बिल्कुल उपयुक्त मानी जाती है। ऐसे में अब पंजाब के किसान सेब का उत्पादन करके बेहतरीन आय कर सकेंगे। मुख्य बात ये है, कि सेब की इस किस्म की खेती करने पर कम खर्चा आएगा।

सेब की खेती से बढ़ेगी किसानों की आमदनी

दैनिक भास्कर के अनुसार, कृषि विज्ञान केंद्र पठानकोट का सेब के ऊपर चल रहा परीक्षण सफलतापूर्वक हो चुका है। अब पंजाब के किसान पारंपरिक फसलों के अतिरिक्त सेब की खेती कर सकते हैं। इससे उन्हें अधिक आमदनी होगी। कृषि विज्ञान केंद्र पठानकोट के अधिकारी सुरिंदर कुमार ने बताया है, कि राज्य सरकार किसानों को फसल चक्र से बाहर निकालना चाहती है। जिससे कि वह बाकी फसलों की खेती कर सकें। ऐसे में सेब की खेती पंजाब में खेती किसानी करने वाले कृषकों के लिए किसी वरदान से कम नहीं होगी।

अब गर्म जलवायु वाला पंजाब भी सेब का उत्पादन करेगा

अगर हम आम आदमी के नजरिये को ध्यान में रखकर बात करें तो अधिकाँश लोगों का यह मानना है, कि सेब का उत्पादन केवल ठंडे राज्यों में किया जा सकता है। विशेष रूप से उन जगहों पर जहां बर्फबारी हो रही है। हालाँकि, अब वैज्ञानिकों के प्रयासों से पंजाब जैसे अधिक तापमान वाले राज्य में भी सेब की खेती की जा सकती है। इतना ही नहीं अब कृषि विज्ञान केंद्र पठानकोट कृषकों को सेब के उत्पादन हेतु प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से जागरूक करने का कार्य करेगा। ये भी पढ़े: सेब की खेती संवार सकती है बिहारी किसानों की जिंदगी, बिहार सरकार का अनोखा प्रयास

गेंहू की भी तीन नवीन किस्म विकसित की थी

बतादें, कि खेती करने के दौरान लागत को कम करने के लिए और उत्पादन को अधिक करने के लिए देश के समस्त विश्वविद्यालय वक्त-वक्त पर नवीन किस्मों को विकसित करते रहते हैं। बतादें, कि भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद द्वारा बीते माह गेंहू की तीन नवीन किस्मों को विकसित किया गया था। जिसके ऊपर अधिक तापमान का कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। सेब की इस किस्म की मुख्य विशेषता यह है, कि गर्मी का आरंभ होने से पूर्व ही यह पककर कटाई हेतु तैयार हो जाएगी।

यह किस्म HD-2967 एवं HD-3086 किस्म की तुलना में ज्यादा पैदावार देता है

खबरों के अनुसार, ICAR के वैज्ञानिकोंं ने बताया था, कि उन्होंने गेहूं की जिस किस्म को विकसित किया था। उनका प्रमुख उदेश्य बीट-द-हीट समाधान के अंतर्गत बुवाई के वक्त को आगे करना है। यदि इन नवीन विकसित किस्मों की बुवाई 20 अक्टूबर के मध्य की जाती है। तो यह होली से पूर्व पक कर कटाई हेतु तैयार हो जाएगी। मतलब कि गर्मी आने से पहले पहले इसको काटा जा सकता है। बतादें कि पहली किस्म का नाम HDCSW-18 है। यह HD-2967 व HD-3086 किस्म के तुलनात्मक अधिक गेहूं की पैदावार देगी।
यूट्यूब से सीखकर चालू की सेब की खेती, अब बिहार का किसान कमाएगा लाखों

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आजकल किसान बदलते दौर में खुद भी काफी सजग और जागरूक होते जा रहे हैं। किसान प्रगति और उन्नति के पथ पर अग्रसर होते जा रहे हैं। आज हम आपको एक ऐसे ही विकासशील किसान के बारे में बताने जा रहे हैं, जिसने अपनी लगन और मेहनत से एक अच्छी कामयाबी हांसिल की है। हम बात कर रहे हैं, बिहार के किसान खुर्शीद आलम की जिन्होंने लगभग एक एकड़ भूमि के हिस्से में सेब के पौधे लगाए हैं। दरअसल, उनके द्वारा उगाए गए पौधों में से 20 प्रतिशत पौधे सूख गए है। हालाँकि, बचे कुचे 80 प्रतिशत पौधों पर फल लगे हुए हैं। सेब का नाम कान में पड़ते ही लोगों के मुंह में पानी आ जाता है। यह एक ऐसा फल है, जिसका सेवन करने से शरीर को प्रचूर मात्रा में विटामिन्स एवं पोशक तत्व प्राप्त हो जाते हैं। यही कारण है, कि बीमार होने की स्थिति में चिकित्सक भी लोगों को सेब का सेवन करने की सलाह देते हैं। दरअसल, लोगों का मानना है, कि सेब की खेती सिर्फ कश्मीर और हिमाचल प्रदेश में ही की जाती है। परंतु, अब ये सब बातें काफी पुरानी हो चुकी हैं। आजकल बिहार और उत्तर प्रदेश जैसे गर्म जलवायु वाले प्रदेशों में भी किसान सेब की खेती कर रहे हैं। इससे किसानों को काफी मोटी आमदनी भी हो रही है। यही वजह है, कि आहिस्ते-आहिस्ते बिहार में सेब की खेती का रकबा बढ़ता जा रहा है। 

खुर्शीद आलम ने किस तरह शुरू की सेब की खेती

खबरों के मुताबिक, बिहार के पूर्णिया जनपद में एक किसान ने यूट्यूब पर देखकर सेब की खेती करनी चालू की है। इसमें किसान को सफलता भी हांसिल हुई है। किसान खुर्शीद आलम ने बताया है, कि ह वह पहले धान एवं गेहूं जैसी पारंपरिक फसलों का उत्पादन करते थे। परंतु, उसमें परिश्रम काफी ज्यादा करना पड़ता था और मुनाफा काफी ज्यादा कम होता था। ऐसे में मुझे सेब की खेती करने का विचार आया। इसके उपरांत खुर्शीद आलम ने यूट्यूब से सेब की खेती करने का प्रशिक्षण लिया। खुर्शीद आलम ने गर्म प्रदेश में उगाए जाने वाले हिमाचली सेब की किस्म अन्ना एवं हरिओम 91 के पौधों को अपने बाग में रोपे हुए हैं। इसके लिए खुर्शीद ने 100 रुपये प्रति पौधे की दर से हिमाचल प्रदेश से पौधे मंगवाये थे। 

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कितने माह में फल आना शुरू हो गए हैं

खुर्शीद आलम ने लगभग एक एकड़ में सेब के पौधे लगाए हैं। दरअसल, 20 प्रतिशत पौधे सूख गए जबकि 80 फीसदी पौधों में फल लग गए हैं। उन्होंने बताया है, कि सेब की खेती का परीक्षण यदि सफल रहा तो, आगामी वर्षों में वह और ज्यादा भूमि के रकबे में हिमाचली सेब की खेती करेंगे। खुर्शीद आलम ने कहा कि विगत वर्ष जनवरी माह में उन्होंने अपनी एक एकड़ भूमि पर सेब के 100 पौधे लगाए थे। 15 महीने के उपरांत इन पौधों पर फल आने चालू हो गए हैं। उनकी माने तो यह पौधे 25 वर्षों तक फल देते रहेंगे। इससे उनकी अच्छी खासी आमदनी होगी। 

किसान एक एकड़ में कितने सेब के पेड़ लगा सकते हैं

खुर्शीद ने बताया है, कि यदि किसान चाहें, तो एक एकड़ में 150 सेब के पौधे भी रोप सकते हैं। उनका कहना है, कि सेब का पौधा लगाने से पूर्व 2×2 का गड्ढा खोदना पड़ता है। इसके उपरांत पौधे लगाने से पूर्व गड्ढों में वर्मी कंपोस्ट सहित चिकनी मिट्टी भी डालनी पड़ती है। इससे पौधे की काफी बेहतरीन वृद्धि होती है एवं वह वक्त पर ही फल देने लग जाते हैं। साथ ही, वक्त-वक्त पर कीटों से संरक्षण हेतु पौधों के ऊपर स्प्रे भी करना पड़ेगा। खुर्शीद आलम ने बताया है, कि अभी पेड़ों पर छोटे- छोटे फल आने शुरू हो गए हैं। यदि मौसम ने साथ दिया तो काफी मोटा फायदा होगा। इसके उपरांत सेब के उत्पादन रकबे को और ज्यादा करूँगा।